विद्वानों के अनुसार अग्नि पुराण को भारतीय संस्कृति का विश्वकोश’ कहा है। इस पुराण में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सूर्य की उपासना करने का विस्तृत वर्णन मिलता है। अग्नि पुराण में महाभारत और रामायण की संक्षिप्त कथा, परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, भगवान विष्णु के अवतारों की कथा, सभी देवताओ के मंत्र आदि विषयो को अत्यन्त सुन्दर तरीके से समझाया गया है।
इस पुराण के वक्ता स्वयं अग्निदेव हे, इसलिए यह पुराण का नाम अग्नि पुराण है। यह पुराण बहोत ही छोटा होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार अग्नि पुराण को भगवान विष्णु का बायां चरण कहा गया है।
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अग्नि पुराण (Agni Purana Hindi) में 383 अध्याय और 11,475 श्लोक मिलते हैं। स्वयं भगवान अग्नि ने महर्षि वशिष्ठ जी को यह पुराण सुनाया था, इसलिए यह पुराण अग्नि पुराण के नाम से प्रसिद्ध है। नारद पुराण पुराण में बताया गया हे की अग्नि पुराण में 15 हजार श्लोक है, और मत्स्य पुराण के अनुसार अग्नि पुराण में 16 हजार श्लोक बताये जाते है। विद्या और शास्त्रीय की दृष्टि से यह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण माना जाता है। अग्नि पुराण में कई सुप्रसिद्ध विद्याओ का संग्रह किया गया है।
अग्नि पुराण के शुरुआत में विष्णु भगवान के अवतारों की कथा का वर्णन किया गया है। यह पुराण में 11 रुद्रों, 8 वसुओं और 12 सूर्य के बारे में विस्तार से बताया गया है। अग्नि पुराण में भगवान विष्णु तथा भगवान शिव की पूजा का वर्णन, सूर्य की पूजा का वर्णन, आदि की पूजा का विधि-विधान का वर्णन दिया गया है।
अग्नि पुराण में कर्मकांड मूर्ति प्रतिष्ठा, हवन, मंदिर निर्माण, आदि विधियाँ भी बताई गयी है। अग्नि पुराण के अंतिम भाग में आयुर्वेद का विशिष्ट वर्णन किया गया है। अग्नि पुराण के कई अध्यायों में आयुर्वेद के के बारे में समझाया गया है। इस पुराण में छंदःशास्त्र, अलंकार शास्त्र और व्याकरण भी दिये गए है।
अग्नि पुराण (Agni Purana Hindi) विशाल ज्ञान भंडार और पुराणों की अपनी व्यापक दृष्टि के कारण श्रेष्ठ स्थान रखता है। इस पुराण में सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन होने के कारण ‘पंचलक्षण’ पुराण भी कहते है। अग्नि पुराण में प्राचीन भारत की परा और अपरा विद्याओं का इतना सुंदर वर्णन कहा हे, की इसे हम विशाल विश्वकोश कह सकते हैं।
अग्नि पुराण प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है, क्योकि सभी विद्याओ का वर्णन और यह पुराण अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है। अग्नि पुराण दो भागो में विभाजित है, पहले भाग में ब्रह्म विद्या का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस पुराण को सुनने से केवल देवगण ही नहीं, मनुष्य पशु-पक्षी तथा समस्त प्राणी सुख समृद्धि को प्राप्त होते है। देवालय निर्माण करने से जो फल मिलता हे उस विषय में अग्निदेव ने आख्यान दिए गए है। इस पुराण में चौसठ योगनियों का सविस्तार पूर्वक वर्णन भी कहा गया है। इस पुराण में काल गणना के विषय में भी प्रकाश डाला गया है।
अग्नि पुराण में दशमी व्रत, एकादशी व्रत, प्रतिपदा व्रत, शिखिव्रत आदि व्रतों का महत्त्व समझाया गया है। इसमें नामक ब्राह्मण की कथा भी कही गई है।
अग्नि पुराण में ईशान कल्प का वर्णन अग्निदेव ने महर्षि वशिष्ठ ऋषि से कहा है। इस पुराण में पुराण विषय के प्रश्न है, फ़िर भगवान विष्णु के अवतारों की कथा और फ़िर सृष्टि का वर्णन और भगवान विष्णु की पूजा का संदेश सुनाया गया है। इस पुराण में अग्निकार्य, श्लोक, मुद्रादि के लक्षण, सर्वदीक्षा की विद्या और अभिषेक की समीक्षा बताये गये है। इसके बाद मंडल का लक्षण, कुशामापार्जन, पवित्रारोपण विधि-विधान, देवालय का विधि-विधान, शालीग्राम की पूजा और मूर्तियों का भिन्न भिन्न वर्णन कहा गया है। इस पुराण में सर्वदेव प्रतिष्ठा, ब्रहमाण्ड का वर्णन, गंगा नदि और तीर्थों का माहात्म्यबताया गया है।
अग्नि पुराण के अंत में शारीरिक वेदान्त की समीक्षा, विविध प्रकार की शान्ति, छन्द शास्त्र, साहित्य, एकाक्षर, नरक का वर्णन, योगशास्त्र, ब्रह्मज्ञान और पुराण सुनने का फ़ल कहा गया है।